Chhath puja 2023: कब से शुरू हो रहा है ?
Chhath puja षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानि चतुर्थी से नहाय-खाय से आरंभ हो जाता है और इसका समापन सप्तमी तिथि को पारण करके किया जाता है। छठ पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। इस पर्व में मुख्यतः सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है। तो चलिए जानते हैं छठ पूजा की तिथियां अर्घ्य का समय और पारण समय क्या है।
chhath puja को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।
chhath जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया
जानिए कब है chhath puja का शुभ मुहूर्त : नहाय खाय, सूर्य पूजन व अर्घ्य देने का
नहाय-खाय तिथि
chhath puja का यह महापर्व चार दिन तक चलता है इसका पहला दिन नहाय-खाय होता है। इस साल नहाय-खाय 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे होगा वहीं, सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा। बता दें कि छठ पूजा की नहाय खाय परंपरा में व्रती नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
खरना तिथि
खरना chhath puja का दूसरा दिन होता है। इस साल खरना 18 नवंबर को है। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करते हैं। इस दिन गु़ड़ से बनी चावल की खीर खाई जाती है।
इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।
संध्या अर्घ्य का समय
chhath puja पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा।
19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अर्घ्य दिया जाता है।
उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। इस साल 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।
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छठ एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है, विशेष रूप से, भारतीय राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और कोशी, मधेश और लुंबिनी के नेपाली स्वायत्त प्रांतों का। छठ पूजा के दौरान प्रार्थनाएं सौर देवता, सूर्य को समर्पित की जाती हैं, ताकि पृथ्वी पर जीवन की प्रचुरता प्रदान करने के लिए कृतज्ञता और कृतज्ञता व्यक्त की जा सके और यह अनुरोध किया जा सके कि कुछ इच्छाएं पूरी की जाएं।
छठ एक हिंदू त्योहार है जो सूर्य देव की पूजा को समर्पित है, जिन्हें सूर्य देव के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार आम तौर पर तिहार या दिवाली के छह दिन बाद होता है। चूँकि यह हिंदू चंद्र माह कार्तिक के शुक्ल पक्ष के छठे दिन पड़ता है इसलिए इसे सूर्य षष्ठी वर्त भी कहा जाता है।
देवी प्रकृति के छठे रूप और भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह दीपावली, या तिहार के छह दिन बाद, हिंदू कैलेंडर विक्रम संवत में कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के चंद्र महीने के छठे दिन मनाया जाता है। अनुष्ठान चार दिनों तक मनाया जाता है। उनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (व्रत) से परहेज करना, पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) चढ़ाना और डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना शामिल है।कुछ भक्त नदी तट की ओर जाते समय साष्टांग मार्च भी करते हैं।
बिहार के बासुकी बिहारी शहर के चौधरी पोखैर में छठ पूजा
पर्यावरणविदों ने दावा किया है कि छठ का त्योहार दुनिया के सबसे पर्यावरण-अनुकूल धार्मिक त्योहारों में से एक है। सभी भक्त समान प्रसाद (धार्मिक भोजन) और प्रसाद तैयार करते हैं। हालाँकि यह त्यौहार नेपाल और भारतीय राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड में सबसे व्यापक रूप से मनाया जाता है, यह उन क्षेत्रों में भी प्रचलित है जहाँ उन क्षेत्रों के प्रवासी और प्रवासियों की उपस्थिति है। यह सभी उत्तरी क्षेत्रों और दिल्ली जैसे प्रमुख उत्तर भारतीय शहरी केंद्रों में मनाया जाता है। मुंबई और काठमांडू घाटी में लाखों लोग इसे मनाते हैं
छठ पूजा भगवान सूर्य को समर्पित है। सूर्य प्रत्येक प्राणी को दिखाई देता है और पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार है।[25] इस दिन सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठी मैया (या छठी माता) बच्चों की रक्षा करती हैं
बीमारियों और समस्याओं से छुटकारा दिलाता है और उन्हें लंबा जीवन और अच्छा स्वास्थ्य देता है
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